All India Jain Minority Federation
केंद्र सरकार की इस राजपत्रिय अधिसुचना से 'जैन' धर्म के स्वतंत्र अस्तित्व की पुष्टि के साथ-साथ जैन समाजको एवं जैन समाज के सभी धार्मिक संस्थान तथा शैक्षणिक संस्थानों को संविधान की धारा 25 से 30 तक मे वर्णित विशेषाधिकार एवं संरक्षण भी प्राप्त हुए है । ‘जैन – समाज’ को केन्द्र सरकार द्वारा अल्पसंख्याक दर्जा मिलने से समाजबंधुओं को इसका क्या लाभ है.....? हमारे तीर्थ स्थलों को किस प्रकार के लाभ मिल सकता है, किस प्रकार अब उन्हें सुरक्षित रखा जा सकता है और शैक्षणिक संस्थाओं को क्या लाभ मिल सकता है ऐसे अनेक प्रश्न जैन बंधुओं के हृदय मैं अंतर्निहित हैं। ‘जैन समाज’ जो कि हमेशा से देता आया है, उसे सरकार से कुछ लेने की क्या आवश्यकता है ? हमैं अनुदान क्यों चाहिए, दर्जा मिलने से हम देश के मुख्य प्रवाह से अलग तो नहीं होंगे, ऐसे भी कुछ विचार समाजके कुछ बंधुओं के हृदय मैं घर कर रहे है। अर्थात् तीर के समान चुभ रहे हैं। ‘जैन समाज’ सर्व साधारण रूप से सक्षम है परन्तु समाजके कुछ लोग ऐसे भी हैं जो निम्न आय की श्रेंणी मैं आते हैं, ऐसे परिवारों के बच्चों के लिये उच्च शिक्षा के लिए, व्यापार मैं वृद्धि के लिये, स्वयं रोजगार के लिये अल्पसंख्याक दर्जा अत्यधिक महत्वपूर्ण है। वैसे तो भारत में सर्वाधिक दान देनेवाले एवं सरकारों को सर्वाधिक राजस्व देनेवालों में जैन समाज शीर्ष स्थान पर है। लेकिन यह स्थान समाज के 30 प्रतिशत उच्च एवं अतिउच्च आय श्रेणी के लोगों से प्राप्त है। केंद्र एवं राज्य सरकारों की विभिन्न योजनाओं में पहली कक्षा से पी.एच.डी, एम.फील तक सभी तरह की पढाई के लिए प्रतिवर्ष 1 हजार से 50 हजार तक की छात्रवृत्ति योजनाये। महिला कल्याण योजनाये, धार्मिक संस्थान, समाजिक संस्थानों के विकास की योजनाये, शिक्षा संस्थाओं को 2 लाख रूपये से 3 करोड तक का अनुदान। व्यापारी-उद्योजकों के लिए वार्षिक 6 प्रतिशत ब्याज से 30 लाख रूपये तक का ॠण, महिला एवं युवाओंको कौशल विकास हेतु अनुदान, प्राचीन तीर्थ एवं प्राचीन ग्रंथो के रखरखाव एवं जीर्णोध्दार हेतु अनुदान, समाज भवन के लिए अनुदान जैसी अनेक महत्वपूर्ण योजनाओं का समावेश है। समाज के 50 प्रतिशत लोग सामान्य श्रेणी में आते है, उन्हे इन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ हो सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर यह दर्जा प्राप्त होने के बावजुद भी पिछले चार वर्षां में विभिन्न योजनाओं में जैन लाभार्थीयों की संख्या अल्प है। इसका मुल कारण जानकारी का अभाव है। यह जानकारी भारतवर्ष के सभी जैन परिवारों तक पहुँचाने एवं योजनाओं का लाभ लेने में मार्गदर्शन एवं सहयोग हेतु समस्त जैन समाज की राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी शिखर संस्था कार्यरत है, जो मुख्यतः अल्पसंख्याक योजनाओं के क्रियान्वयन एवं केंद्र एवं राज्य सरकारों के साथ नियमित और प्रभावी समन्वय का कार्य करती है। राष्ट्रीय स्तर पर जैन समाज को अल्पसंख्याक का दर्जा प्राप्त होने से केंद्र तथा राज्य सरकारों की अल्पसंख्याक समाज के विकास हेतु बनायी सभी योजनाओं का लाभ जैन समाज को भी मिलेगा।
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